आपकी उम्र क्या है? आपने क्या किया और क्या नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता। आप दुनिया में बदलाव लाने के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो कभी भी शुरुआत कर सकते हैं।
जैसा कि हम सब जानते हैं घर से निकलने वाले प्लास्टिक के कचरे को कुछ ही लोग सही तरीके से प्रबंध करते हैं, बाकी लोगों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता यह कचरा कहां जाता है या कहां इसका प्रबंध करना चाहिए।
लेकिन ज्यादातर लोग बढ़ते प्रदूषण और तापमान की रिपोर्ट्स, खबरों के माध्यम से देखकर यही कहते रहते हैं, कि प्रशासन कुछ नहीं करता, वैसे अगर हम देखें तो इस मामले में प्रशासन से ज्यादा हमारी भागीदारी की आवश्यकता है। अगर समाज का हर एक परिवार साथ मिलकर इस समस्या का सामना करें तो हम एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं, अगर हमारे पास इसके लिए समय नहीं है, तो हम अपने घर के बच्चों को इसके लिए काफी हद तक प्रेरित कर सकते हैं, क्योंकि जो बड़े नहीं कर पाते हैं अक्सर उन्हें बच्चे अपनी रुचि से खेल-खेल में कर देते हैं। आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको मुंबई के रहने वाले उन बच्चों के बारे में बताने वाले हैं, जिन्होंने सिर्फ एक पहल से प्लास्टिक के कचरे का सही प्रयोग कर, बेसहारा और बेघर जानवरों के लिए एक छोटा सा आश्रय ही नहीं बनाया बल्कि हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बने।
18 वर्षीय वसुंधरा गुप्ता और उनकी 'उर्वरी' टीम जिन्होंने प्लास्टिक की बोतलों और अन्य कचरे से डेढ़ सौ इको ब्रिक बनाकर बेसहारा और बेघर जानवरों के लिए एक छोटा सा शेल्टर तैयार किया जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी अधिक वायरल हो रही है, द बेटर इंडिया से वार्तालाप करते हुए वसुंधरा और उनके साथियों ने अपने इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया। पर्यावरण के प्रति सदैव जागरूक रही वसुंधरा ने अपनी दोस्त खुशी शाह के साथ मिलकर सन 2019 में 'उर्वरी' संगठन की शुरुआत की वार्तालाप करते हुए उन्होंने बताया कि जब 2019 में अमेजन के जंगलों में आग लगी थी तब हम बहुत दुखी हुए थे और उसी वक्त सोचा कि पर्यावरण के लिए हम बच्चे अपने स्तर पर कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे, और इसी सोच ने 'उर्वरी' को जन्म दिया। उन्होंने कहा सर्वप्रथम हम ने 5-5 करके पेड़ लगाना प्रारंभ किया और बाद में उनकी देखभाल भी करते थे, देखते ही देखते इनकी यह टीम बढ़ने लगी, अभी फिलहाल टीम में कुल 8 सदस्य हैं, जानकारी के लिए बता दें हाल ही में 12वीं कक्षा पास कर कॉलेज जीवन में अपना कदम रखा है। इनमें सिया गुप्ता, आयुष रंगरास, ओमकार शेनॉय, भविष्का मेंडोन्सा, श्रावणी जाधव, ब्रेंडन ज्यूड, श्लोका सिंह ,राहिल जेठी और यस बडाला शामिल हैं।
लोगों को किया जागरूक:- आपको बता दें मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने बताया कि साल 2020 में को'-रोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन की वजह से उनका सारा काम रुक गया, जैसे ही लॉकडाउन वापस खुला तो मुंबई में पिछले साल काफी तेजी से जुलाई में बारिश होने की वजह से हमने देखा कि बेसहारा व बेघर जानवर बारिश में काफी परेशान हो रहे थे खासकर इनमें कुत्ते थे, क्योंकि इन्हें अपनी सोसाइटी में कोई भी नहीं आने देता था, इसलिए हमने सोचा कि क्यों न इनके लिए कुछ किया जाए, फिर क्या था, 'उर्वरी' टीम पहले से ही प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन पर कार्य कर रही थी।
उन्होंने कहा की घरों से निकलने वाले प्लास्टिक के कचरे से इको ब्रिक बना रहे थे, लेकिन इन इको ब्रिक को संगठनों तक पहुंचा पाना एक चुनौती बन गई थी, ऐसे में उन्हें एक सुझाव आया कि क्यों न इन इको ब्रिक से बेसाहारा कुत्तों के लिए शेल्टर तैयार किया जाए, और साल 2020 जुलाई में उन्होंने यह मुहिम प्रारंभ कर दी। इस टीम कि सदस्य सिया गुप्ता बताती हैं, कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए इको ब्रिक सबसे अच्छा समाधान है, इन्हें बनाना कोई कठिन काम नहीं है, बस केवल आपको अपने घर के प्लास्टिक कचरे को प्लास्टिक बोतल में इकट्ठा करते रहना है, ताकि जब तक यह पूरा भरकर एक मजबूत ईंट की तरह पक्का ना हो जाए, परंतु शेल्टर बनाने के लिए एक दो नहीं बल्कि लगभग 150 इको ब्रिक की आवश्यकता थी और यह एक परिवार के बस की बात नहीं थी, क्योंकि एक परिवार मुश्किल से एक या दो इको ब्रिक तैयार कर सकता है, इसलिए इस टीम ने पूरी मुंबई की अलग-अलग सोसाइटी के लोगों से मिलकर इसके बारे में बताया और लोगों को जागरूक किया।
इस टीम के सदस्य ने कभी यह नहीं सोचा था, कि उन्हें इतनी जल्दी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त होगी। मुंबई की अलग-अलग सोसाइटी से लोग अपने घर से बाहर निकल कर आगे आने लगे और अपने घर का कचरा इकट्ठा करने लगे। इनमें से बहुत से लोगों ने इको ब्रिक तैयार भी किया। परंतु मुंबई शहर में महामारी के कारण शक्ति से चलते हुए उन्हें सभी चीजें इकट्ठा करने में काफी परेशानी झेलनी पड़ी, उन्होंने कहा कि लोग अपने घर के कचरे को इकट्ठा करके सोसाइटी में नीचे रख देते थे, फिर वे लोग वहां से इसे इकट्ठा कर इको ब्रिक तैयार करते थे।
बेसहारा और बेघर कुत्तों के लिए बना शेल्टर:- उन्होंने बताया कि लगभग 10 से 11 महीनों की कड़ी मेहनत के बाद वसुंधरा और उनकी टीम ने 45 किलोग्राम कचरे से इको ब्रिक बनाया और बाद में शेल्टर के डिजाइन पर ध्यान दिया गया, ताकि यह शेल्टर एक मिसाल बन सके। शेल्टर के लिए उन्होंने लोहे की फ्रेम को सिलेक्ट किया और इसमें 'पॉल्यूरेथेन फोम' का भी प्रयोग किया गया ताकि इसके अंदर का तापमान संतुलित बना रहे।
इसके खर्चे की अगर हम बात करें तो इस पूरे शेल्टर को बनाने में लगभग 75 हजार रुपए का खर्चा हुआ जिसके लिए इस टीम के सदस्यों ने अपनी पॉकेट मनी से पैसे दिए। जो इस समाज के लिए एक मिसाल है, इस शेल्टर को तैयार होने के बाद इसके रखने की भी समस्या आई, क्योंकि कोई भी कॉलोनी वाले इसे रखने की अनुमति नहीं दे रहे थे, ऐसे में इस टीम के सदस्यों ने वासी के सेक्टर 29 में रहने वाले पार्षद शशिकांत राउत से सहायता ली, शशिकांत रावत ने इन सब की मेहनत को देखते हुए इसे राजीव गांधी उद्यान में लगाने की अनुमति दी।
जानकारी के लिए बता दें इस शेल्टर में लगभग 3 से 4 कुत्ते आराम से आ सकते हैं, इससे उन्हें गर्मी, सर्दी व बरसात के मौसम में किसी भी तरह की परेशानी नहीं झेलनी पड़ेगी। सिया गुप्ता बताती हैं की उनकी यह कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्लास्टिक अपसाइक्लिंग या रीसाइक्लिंग से जोड़ने की है। इस टीम के सदस्यों की इस कोशिश को देखकर लोग इसकी काफी अधिक तारीफें कर रहे हैं, व सोशल मीडिया पर लगातार इससे जुड़ी खबरें शेयर कर रहे हैं।