इंजीनियर विजय कपूर ने कम किया रिक्शा चालकों का दर्द, ई-रिक्शा को भारत के कोने-कोने तक पहुचाकर दी गरीबो को जीने की एक राह...
दोस्तों रिक्शा ने सफर करने वाले लोगों की जिंदगी को सरल और आसान बना दिया है। सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल के कई राज्यों में ई-रिक्शा ड्राइवर्स को नंबर प्लेट अलॉट कराई गई है। हम इंडियंस ई-रिक्शा का यूज़ आसानी से कर पा रहे हैं इसका क्रेडिट विजय कपूर को जाता है। यह पेशे से एक इंजीनियर है जिन्होंने ई-रिक्शा को देश के हर एक कोने तक पहुंचाया। इन्होंने रिक्शा ड्राइवर्स के काम के महत्व को समझा।
रिक्शा ड्राइवर्स के दर्द को महसूस किया
दरअसल बात 2010 की है जब विजय कपूर ने दिल्ली के चांदनी चौक पार्किंग से बाजार जाने के लिए एक ऑटो लिया, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के बोझ को खींचता है इस काम में बहुत मेहनत लगती है। गर्मी के दिनों में रिक्शा चालक की हालत बुरी हो जाती है लेकिन क्या करें आजीविका के लिए काम करना पड़ता है। रिक्शा चलाते समय यदि वह बीच में रुक जाए तो उसे धक्का देकर खींचने में बहुत पसीना बहाना पड़ता है। इंजीनियर विजय कपूर को रिक्शा वाले का दर्द महसूस हुआ और उन्होंने तभी मन बना लिया की इनके लिए कुछ किया जाए।
2012 में पहली बार मयूरी ई-रिक्शा दौड़े
खबरों के अनुसार विजय कपूर ने उस रिक्शा वाले ड्राइवर से बात की और उन्होंने निर्णय किया कि ऐसा वाहन बनाया जाए जो मानव के लिए उपयोगी हो और जिसे चलाने में मेहनत कम लगे। इन्होंने ड्राइवर की बात को ध्यान में रखते हुए इको फ्रेंडली रिक्शा बनाया। इन्होंने आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। विजय ने Saera Electric Auto Private Limited की 2012 में स्थापना की और इसके साथ ही देश में पहली बार मयूरी ई रिक्शा चले।
बता देगी देश का पहला ई-रिक्शा डॉक्टर अनिल कुमार राजवंशी ने बनाया। डॉ अनिल ने 2000 में निम्बकर एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम करते हुए पहला ई- रिक्शा बनाया इसके लिए इन्हें 2022 में पद्मश्री अवार्ड भी मिला है।
शुरू में रिक्शा बनाने में बहुत कठिनाई आई
डॉ विजय को ई-रिक्शा बनाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा एक सिंपल मॉडल बनाने में भी उन्हें डेढ़ साल लग गया। रिक्शा का टायर नहीं बन पा रहा था डॉ विजय ने टीम के साथ मिलकर खुद टायर बनाएं इसकी बैटरी भी इंडिया में नहीं मिल रही थी। बैटरी उन्होंने वेंडर से खरीदी और व्हीकल में फिट की साथ ही बैटरी चार्ज करना भी सीखा।
पहला ई-रिक्शा बुजुर्ग महिला ने खरीदा
जब मशीन बन जाती है तो उसे बेचना भी उतना ही मुश्किल होता है। विजय का रिक्शा कोई भी खरीदना नहीं चाहता था। ई-रिक्शा बेचने के लिए अपनी ग्रैंड डॉटर को ई रिक्शा में स्कूल छोड़ कर आते थे। एक बुजुर्ग महिला ने आधे पैसों में ई-रिक्शा खरीदी। विजय कपूर का पहला ई-रिक्शा बनने के 8 महीने बाद बिका। विजय ने कहा कि इसी बुजुर्ग महिला ने बाद में 8 ई-रिक्शा और खरीदें।
2014 में बनी सबसे बड़ी ई-रिक्शा मैन्युफैक्चरिंग यूनिट
2012 में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मेरी ई-रिक्शा को चलाने की मंजूरी दी।2014 में देश की सबसे बड़ी ई-रिक्शा मैन्युफैक्चरिंग यूनिट राजस्थान में शुरू की गई। शुरू में जब ई- रिक्शा बनाए गए तब इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने के कोई रूल्स नहीं थे। इंडियन गवर्नमेंट ने एक कमेटी बनाई जिसके हेड थे नितिन गडकरी जिन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए नए रूल्स बनाएं। इंटरनेशनल सेंटर ऑफ ऑटोमेटिक टेक्नोलॉजी के द्वारा देश की पहली मान्यता प्राप्त है ई-रिक्शा मयूरी। बता दे कि विजय कुमार की कंपनी Saera Electric Auto Private Limited 1 दिन में लगभग 300 ई-रिक्शा बनाती है।