बेटे की चाहत को लेकर अक्सर बिटिया से नाराज हो जाते हैं घर के बड़े, पर उन्हें कहां पता जब यही बिटिया उनका नाम रोशन करती है तब....
आज हम आपको एक ऐसे वाक्य के बारे में बताने वाले हैं जो अक्सर बहुत से घरों में देखा गया है। समाज के लोग बेटे की चाहत को लेकर अक्सर बिटिया होने पर नाराज हो जाते हैं। आज का यह वाक्य खासकर उन्हीं लोगों के लिए है जो ऐसा सोचते हैं परंतु जब बाद में पता चलता है कि वह गलत थे। और तब बहुत देर हो जाती है यह वाक्य आपके साथ ना हो आप इसे ध्यान से जरूर देखें।
ऐसा ही वाक्य राजस्थान के झुंझुनू जिले के चारावास गांव में देखने को मिला। हम बात कर रहे हैं गांव की बेटी निशा चाहर के बारे में जिन्होंने हाल ही में यूपीएससी में 117 वीं रैंक प्राप्त की है। परंतु आपको बता दें इस उपलब्धि को हासिल करने से पहले निशा को बेटी होने का अफसोस (दंश)झेलना पड़ा। निशा की दादी निशा से नाराज थी क्योंकि उन्हें पोता नहीं हुआ। इसी चाहत नेे ही निशा और दादी के बीच दूरियां बना दी। परंतु आज जब निशा ने यूपीएससी क्लियर की तब दादी डीजे पर डांस करने से भी नहीं रुकी। क्योंकि दादी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और बाद में उन्होंने कहा बेटियां भी बेटों से कम नहीं होती है और उन्होंने अपनी इस भूल को स्वीकार किया।
निशा की दादी नानचीदेवी देवी ने कहा कि उनके बेटे राजेंद्र की पत्नी चंद्रकला ने उस वक्त बेटी को जन्म दिया था इस पर पूरे घर में सन्नाटा फैल गया। घर के लगभग सदस्य नाखुश थे। लेकिन बेटे ने पोती का ख्याल रखने के लिए उन्हें जिम्मेदारी दे दी। निशा का बचपन नटखटपन व बदमाशियां के साथ-साथ नाना-नानी और दादा के प्यार के आगे दादी को झुकना पड़ा।
निशा ने जब यूपीएससी किलियर की तब दादी को
सबसे अधिक खुशी हुई। यूपीएससी का रिजल्ट आते ही दादी लोगों में मिठाई बांटती नजर आई और रात भर डीजे पर झूमि। मानो दादी की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा हो।
पिता शिक्षक, बोले- अंदाजा ही नहीं था
शिक्षक पिता राजेंद्र चाहर कहते हैं कि उन्हें यह अंदाजा भी नहीं था कि निशा पहले ही प्रयास में यूपीएससी क्लियर कर लेगी। हां इतना जरूर था कि आज तक निशा किसी परीक्षा में फेल नहीं हुई वे सोचते थे कि निशा इस परीक्षा को भी पास कर लेगी।
घरवालों ने अगले साल की भी खरीद ली किताबें, दादी बोली इसी साल होगी पास
आपको बता दें निशा के इंटरव्यू देने के बाद घर वालों ने निशा के लिए अगले साल की भी किताबें खरीद ली। जब नानची देवी को पता चला तो उन्होंने अपने बेटे और बहू को डांटा और कहां इसी साल पास होगी मेरी पोती। क्योंकि नानजी देवी को निशा पर पूरा विश्वास था। दादी ने बताया कि रोजाना 2-2 दिए जलाए। निशा की सफलता पर दिए का घी खत्म नहीं होने दिया था। दादी ने बताया कि पूजा करते वक्त वे एक ही टाइम दिया जलाती थी। परंतु निशा की सफलता के लिए उन्होंने दिन में दो बार दिए जलाएं। और दीपक का घी खत्म नहीं होने दिया कभी। वे ईश्वर से निशा की सफलता की प्रार्थना करती थी।
निशा और राजेंद्र पिता के कभी मत नहीं मिले।
आपको बता दें पिता राजेंद्र चाहते थे। कि उनकी बेटी डॉक्टर बने इसलिए 11वीं का विषय चुनते वक्त उन्होंने निशा को बायोलॉजी लेने के लिए कहा। परंतु निशा ने बायोलॉजी लेने से इनकार कर दिया और उन्होंने मैथ्स को अपना लक्ष्य बनाया। निशा आईएएस की तैयारी करना चाहती थी। निशा के पिता सोचते थे कि निशा पढ़ाई में होशियार है इसलिए उसे बायोलॉजी दिला देते हैं और वह डॉक्टर बन जाएगी। जिसके बाद उसकी शादी कर देंगे। परंतु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। डॉक्टर ना बनी परंतु बन गई आईएएस।
पिता को डर
शिक्षक पिता राजेंद्र सोचते थे कि पहले इंजीनियरिंग में फिर चार-पांच साल आईएएस में लग जाएगी। जिससे निशा की उम्र निकल जाएगी। बाद में शादी करने में दिक्कतें आएंगी। इसलिए पिता नहीं चाहते थे कि निशा मैथ्स सब्जेक्ट चुने। पिता राजेंद्र निशा की सदैव सभी इच्छाएं पूरी करते थे इसलिए वह चुप रहे। यहां तक कि निशा ने बिरला बालिका विद्यापीठ में पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो पिता ने चार लाख सालाना फीस में वहां पर भी एडमिशन दिला दीया।
कई बार आते जाते झुंझुनूं कलेक्टर का बंगला देखा करती थी निशा
निशा बचपन से ही कलेक्टर बनने की चाहत रहती थी। वह जब भी झुंझुनू जाती तो कलेक्टर का बंगला जरूर देखती। और इसी चाहत में निशा को आईएएस बना दिया।
निशा ने बताया कि वह आईपीएस नहीं बनी तो किसी काम की नहीं
एक समय जब निशा की मेंस की परीक्षा थी और वे दिल्ली में एक होटल में रुके हुए थे। निशा के साथ परिवार के सदस्यों में नाना जी भी थे। निशा को जनवरी में सर्दी के मौसम में नहाकर परीक्षा देने जाना था। उस वक्त होटल का गीजर खराब था। साधारण दिनों में भी निशा ठंडे पानी से नहीं नाहती थी। इसलिए निशा को गर्म पानी का इंतजार था। इसलिए वह होटल वालों को फोन कर रही थी। इतने में नाना चाय बनाने वाली केतली में निशा के लिए गर्म पानी कर के ले आए। इस वाक्य को देखकर निशा के आंखों में आंसू आ गए और बोली कि अगर मैं आईएस नहीं बन पाई।तो फिर मैं किसी काम की नहीं रहूंगी।