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आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर आलोक सागर आखिरकार आदिवासी जीवन क्यों जी रहे हैं, जाने इसके पीछे का पूरा सच-banner
Nidhi Jangir Author photo BY: NIDHI JANGIR 2.1K | 8 | 2 years ago

आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर आलोक सागर आखिरकार आदिवासी जीवन क्यों जी रहे हैं, जाने इसके पीछे का पूरा सच

प्रोफेसर आलोक सागर के आदिवासी जीवन जीने के पीछे है बहुत बड़ा राज, इससे हो रहा है गरीब लोगों को फायदा

लोगों के पहनावे को देखकर आप उसकी स्थिति का पता नहीं लगा सकते हैं कि वह बड़ा आदमी है या आम आदमी। कभी-कभी सामान्य सा दिखने वाला एक आदमी भी बड़ा बिजनेसमैन हो सकता है और एक भिखारी जब अंग्रेजी बोल कर सबको चौंका देता है कि वह हाई एजुकेटेड है।

ऐसे ही एक व्यक्ति है जो आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। खास बात तो यह है कि इन्होंने आरबीआई के गवर्नर रह चुके रघुराम राजन को भी पढ़ाया है।

इनका नाम है आलोक सागर जो आईआईटीके प्रोफेसर है। सर आलोक सागर 33 सालों से एमपी के एक गांव में आदिवासी की तरह जीवन जी रहे हैं। आप लोग यह जानना चाहते हैं कि इतना बड़ा आदमी जिसके पास सारी ऐसो आराम की चीजें है वह इतना साधारण सा जीवन क्यों जी रहा है? तो चलिए आपको पूरी जानकारी देते हैं।

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आईआईटी प्रोफेसर आलोक सागर का जन्म 20 जनवरी 1950 को हुआ था। आईआईटी दिल्ली से ही इलेक्ट्रॉनिक्स में इन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और 1977 में अमेरिका चले गए जहां की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी से रिसर्च की डिग्री प्राप्त। साथ ही उन्होंने डेंटल ब्रांच में पोस्ट डायरेक्टर और सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट व डलहौजी यूनिवर्सिटी से फेलोशिप भी की।

अमेरिका से पढ़ाई पूरी होने के बाद आलोक सागर दिल्ली में आईआईटी प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे, लेकिन उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और 33 सालों से मध्य प्रदेश बैतूल के आदिवासी गांव में साधारण सा जीवन बिता रहे हैं।

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लोक का रहन सहन और पहनावा भी बिल्कुल आदिवासी व्यक्तियों जैसा ही है। इनके पास कुल मिलाकर 3 कुर्ते और एक साइकिल। प्रोफेसर आलोक इस इलाके में अभी तक 50 हजार से ज्यादा पेड़ पौधे लगा चुके हैं। इतना अच्छा काम करने के साथ प्रोफेसर साहब बीजों को इकट्ठा करके लोगों तक भी पहुंच जाते हैं।

आलोक सागर आदिवासी जीवन इसलिए जी रहे हैं क्योंकि वह इन लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। यह आदिवासी व्यक्तियों को गरीबी से लड़ना सिखा रहे हैं। आपको बता दें कि चुनाव के दौरान अफसरों को प्रोफेसर आलोक पर अंदेशा हुआ था।

अफसरों का मानना था कि यह आदमी कौन है जो ऐसा काम कर रहा है इसलिए इन्होंने आलोक सागर को बेतूल गांव से जाने को कहा लेकिन जब प्रोफेसर साहब के एक करीबी आदमी ने उनकी डिग्रियां दिखाई तो सारे बहुत भौंचक्के रह गए। इसकी जांच करने के लिए अफसरों ने आलोक सागर को पुलिस स्टेशन बुलाया वह अफसरों को पता लगा कि यह कोई गांव का सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर है।

प्रोफेसर आलोक सागर

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आदिवासी बच्चों को पढ़ाते हैं और पेड़ पौधों की रक्षा करना सिखाते हैं। आलोक सागर बैतूल के कोचमहू गांव मे ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के बांदा जमशेदपुर सिंह भूमि और होशंगाबाद के रसूलिया, केसला गांव में भी रह चुके हैं। आलोक सागर ने अपना पूरा जीवन इन आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा हेतु लगा दिया है।

 

 

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