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. ट्रक चालक का बेटा बना आईएएस, घर में लाइट कनेक्शन नहीं था, पिता ने उधार लेकर पढ़ाया-banner
Suman Choudhary Author photo BY: SUMAN CHOUDHARY 499 | 0 | 2 years ago

. ट्रक चालक का बेटा बना आईएएस, घर में लाइट कनेक्शन नहीं था, पिता ने उधार लेकर पढ़ाया

रिक्शा चालक का बेटे को आईएएस बना देख पवन ने ठानी आईएस बनने की जिद...

अगर मन में सच्ची लगन और आस्था हो तो हम किसी भी लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। ऐसी ही सच्ची लग्न और आस्था नागौर के रहने वाले पवन कुमार कुमावत की भी थी जिन्होंने आईएएस बनने के अपने सपने को पूरा किया। इस बीच उनके सामने बहुत मुसीबतें आई लेकिन फिर भी यह झुके नहीं। इनके पिता ट्रक चलाते हैं इनके घर में लाइट कनेक्शन भी नहीं है। इतने मुश्किल वक्त सामना करते हुए इन्होंने यूपीएससी में 551 वी रैंक प्राप्त की।

रिक्शा चालक के बेटे से मिली इंस्पिरेशन
पवन ने कहां की 2006 में एक रिक्शा चालक का बेटा जिसका नाम है गोविंद जायसवाल आईएएस बने थे। इन से प्रेरणा लेकर मैंने भी आईएएस बनने की ठान ली। इसी दिन से मैंने सोच लिया कि कुछ करके दिखाना है और एक लक्ष्य बना लिया कि यहां तक पहुंचना ही है।

झोपड़ी में रहते थे

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पवन नागौर के सोमना में एक झोपड़ी में रहते थे। इनके पिता यहां मिट्टी के बर्तन बनाते थे। आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। 2003 में अपने पिता के साथ ही है नागौर आ गए। यहां जिस स्थान पर रहते थे वहां लाइट कनेक्शन भी नहीं था पड़ोसी के यहां से लाइट जोड़ कर कभी-कभी लाइट की व्यवस्था होती थी। चिमनी और लालटेन की रोशनी में पढ़ते थे। इनकी दादी भी कहती थी भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।

पिता की इनकम 4 हजार रूपए

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पवन ने अपनी मुश्किल भरे वक्त की दासता बताते हुए कहा कि 2003 में हम लोग नागौर आए पिता यहां ट्रक चलाने का काम करते थे और इनकी मंथली इनकम सिर्फ 4 हजार रुपए थी और घर का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता था फिर भी मेरे पिता ने मेरा एडमिशन नागौर के केंद्रीय विद्यालय में कराया साल 2003 में दसवीं में 74.33 व 2005 में सीनियर सेकेंडरी में  79.92% अंक प्राप्त किए, जयपुर के कॉलेज से बीडीएस किया जिसमें इनके 61.29% नंबर बने थे।

उधार लेकर पढ़ाया
पवन ने आगे बताया कि कोचिंग करने के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं थे जिसके बाद मेरे पिता ने कर्ज लेना शुरू किया। जान पहचान वाले लोगों ने बिना ब्याज के पैसे दिए तो कुछ नहीं अपने पैसे वापस लेने के लिए बहुत परेशान किया। हमारा घर का खर्च मुश्किल से चलता था और हमारी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती थी।

पवन ने 2008 में आर्य भास्कर उद्योग निदेशक का पद संभाला लेकिन बनना तो आईएएस ही चाहते थे। उन्होंने दो बार यूपीएससी की एग्जाम दी लेकिन सफल नहीं हो पाए बाद में तीसरी बार एग्जाम देकर आईएएस ऑफिसर बने।

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