एक युवा समूह है जिसने बिना मौसम के ककड़ी की बुवाई कर लागत से ज्यादा मुनाफा कमाया, लोगों को किया जागरूक
भारत की युद्ध के लिए पढ़ना लिखना बहुत कठिन होता जा रहा है क्योंकि युद्ध अपने पूर्वजों के चल रहे व्यापार को ही आगे बढ़ा रहे हैं और कुछ युवा घर की आर्थिक स्थिति के चलते मजदूरी करते हैं इसलिए यह जरूरी नहीं कि हर कोई अच्छा पर लिखा ही नौकरी करें।
भारत कृषि प्रधान देश है बहुत से लोगों का गुजारा खेती से मिलने वाली आय से ही होता है। इंडिया में खेती की जमीन को ही सब कुछ माना जाता है जब एक बेटी की शादी की जाती है तो सबसे पहले लड़की के घर की जमीन को भी देखा जाता है लोग मानते हैं कृषि एक जुआ है जो भी इसे करता है उसे नुकसान सहना पड़ता है।
पहले किसान को खेती के बारे मे इतनी जानकारी नहीं थी जिसके चलते उनका काफी नुकसान हो जाता था लेकिन अब किसानों की मदद खुद कृषि के बड़े बड़े ज्ञाता करते हैं जो उन्हें बताते हैं कि कौन सी फसल की किस्म किस वक्त लगानी है और उसे कितने खाद और पानी की जरूरत है।
लोग आजकल लगातार जमीनों पर खतरनाक रसायन डालते हैं इसे जमीन की उर्वरता धीरे-धीरे खत्म हो रही है वैज्ञानिक किसानों को जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए जागरूक कर रहे हैं वर्मी कंपोस्ट से बनी खाद का उपयोग करने के लिए कह रहे हैं।
भारत मैं आजकल आधुनिक खेती की जा रही है जिससे लोगों को फायदा भी हो रहा है आज हम आपको एक ऐसे युवा ग्रुप के बारे में बताने वाले हैं जिसने ककड़ी की खेती कर लाख हो रुपए कमाए हैं।
भारत में पिछले कई सालों से किसान बेरोजगारी की मार झेल रहा है और आपदाएं भारत के हर एक परिवार के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है कई बार ऐसा होता है कि किसी को सही ढंग से खाना भी नहीं मिल पाता और ऊपर से महामारी का कहर।
कोरोना महामारी के चलते भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह गड़बड़ा गई थी सारे उद्योग धंधे बंद हो गए थे लोगों को रोजगार नहीं मिला तो खाना भी नहीं मिला ऐसी स्थिति में बुरी हालत हो चुकी थी। जब पहली लहर धीरे धीरे खत्म हो रही थी इसी बीच दूसरी लहर के आने से बेरोजगारी की दर 23.5 प्रतिशत बढ़ गई।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी की जानकारी के अनुसार 2021 में अगस्त के महीने में भारत के लगभग 16 लाख से ज्यादा युवाओं ने अपनी जॉब छोड़ दी इन्हीं में से एक है मणिपुर राज्य के लिमाराम गांव के रहने वाली कई सारी बेरोजगार किसानों ने ककड़ी की खेती की।
इन युवाओं की उम्र 31 से 35 वर्ष से इन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित ग्रामीण युवा कौशल प्रशिक्षण में भाग लिया इस प्रशिक्षण में युवाओं को ज्यादा पैसे देने वाली सब्जियों की खेती को सुरक्षित रखने के तरीके बताए गए।
प्रशिक्षण लेने के बाद और आपदा के चलते इन युवाओं ने 1,250 वर्ग मीटर के क्षेत्र में ककड़ी की किस्म आलमगीर-180 की बिना मौसम के लगा दी। करीब एक से दो महीने में करीब 11 बार कटाई करव्कर 1,865 किलोग्राम प्रति 1,250 वर्ग मीटर में ककड़ी की फसल का उत्पादन किया गया।
युवाओं को दोगुना मुनाफा हुआ
इस फसल से युवाओं को अपनी लागत से डबल मुनाफा हुआ जिससे मैं बहुत खुश हुए इन्होंने ककड़ी की फसल में मात्र 11 200 रुपए खर्च किए और लोकल मार्केट में इन्होंने तकलीफ हो तो इस रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से बेचा और इनकी कुल बिक्री लगभग 55,950 रुपये की हुई। उन युवा किसानों को 44,750 रुपये का लाभ मिला।
अन्य युवाओं की भी मदद की
इस युवा ग्रुप में अन्य युवाओं को भी अपने ग्रुप में शामिल कर मॉडर्न टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर तरह तरह की सब्जियों की खेती करने के बारे में जागरूक किया मार्केट में जिस चीज की ज्यादा मांग है जिसे टमाटर, ब्रोकली, गोभी, मटर, ब्रॉडलीफ सरसों का उत्पादन करने की सलाह दी।