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एक टीचर जो अपनी जॉब करने के बाद झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं, कहते हैं बच्चों को पढ़ा कर खुशी मिलती है...-banner
Nidhi Jangir Author photo BY: NIDHI JANGIR 1.5K | 0 | 2 years ago

एक टीचर जो अपनी जॉब करने के बाद झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं, कहते हैं बच्चों को पढ़ा कर खुशी मिलती है...

एक ऐसे अध्यापक जिन्होंने लाचार बच्चों से कटोरा छीन थमाई किताबें, 'स्ट्रीट स्कूल' से सुनहरा बना रहे इनका फ्यूचर...

दोस्तों सतीश चंद्र शर्मा अपने आत्मबल से बच्चों के फ्यूचर को एजुकेशन की दिशा दिखा रहे हैं वह बच्चों को अपने यूनिक स्कूल में पढ़ा रहे हैं इनके स्कूल में रिसोर्सेज की कमी है न बैठने के लिए बेंच है, पढ़ने के लिए कमरे भी नहीं है। केवल बुक्स और बच्चों को श्रेष्ठतर बनाने का विश्वास लिए खुले मैदान में सतीश बच्चों को पढ़ाते हैं।

बारिश हो, ठंड हो, गर्मी हो किसी भी मौसम में यह  स्कूल बंद नहीं होता। सतीश ने बच्चों को पढ़ाने के इस मिशन की शुरुआत 8 साल पहले की।उनकी स्कूल में 20 बच्चे आते हैं और 200 से ज्यादा बच्चे पढ़ चुके हैं।

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सतीश के अनुसार- गरीब बच्चों को हाथ में कटोरा लिए हुए देखते हैं तो उन्हें बहुत बुरा लगता है उनकी क्या गलती कि उनके पास संसाधनों की कमी है। ऐसे गरीब बच्चों को एजुकेशन से जोड़ा। 2008 में इन्होंने स्ट्रीट स्कूल नाम से अपना पहले स्कूल की शुरुआत की। सतीश अकेले ही 20 से 25 बच्चों को बढ़ाते हैं। इस मिशन की शुरुआत 2008 में मथुरा शहर के नवादा की एक झुग्गी बस्ती से की।

माता-पिता को समझाया शिक्षा का मतलब

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सतीश बच्चों को फ्री में बैग, स्लेट और कॉपी और खाने के लिए सामग्री भी उपलब्ध करवाते हैं। कुछ माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे पेरेंट्स को समझाना मुश्किल होता है। क्योंकि वह एजुकेशन का महत्व नहीं समझते हैं। वे मानते हैं बच्चों को मजदूरी करनी चाहिए पढ़कर क्या ही कर लेंगे, आगे करनी तो मजदूरी ही है। सतीश के लिए सबसे चैलेंजिंग ऐसे पेरेंट्स को समझाना ही था।

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सतीश प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं अपनी जॉब करके बचे हुए वक्त में उन्हीं झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के साथ बिताते हैं। सतीश का कहना है बच्चों को पढ़ा कर मुझे बहुत खुशी होती है।

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