महीने के कमाते हैं 68 लाखों रुपए जिनमें से 50 लाख देते हैं लड़कियों की पढ़ाई में, इन्हें कहा जाता है करोड़पति फकीर....
राजस्थान के ऐसे व्यक्ति, जिन्होने लड़कियों की शिक्षा के लिए कर दिया अपना सबकुछ दान, करोड़पति से बना ‘करोड़पति फकीर’
by NEHA RAJPUT
दोस्तों आज भी कई हिस्सों पर समाज लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ होता है, जिससे लड़कियां शिक्षा में पीछे रह जाती हैं, ऐसे क्षेत्र में समाजसेवी आगे बढ़कर इस दिशा में काम कर रहे हैं। राजस्थान के करोड़पति फकीर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
इनका नाम है डॉक्टर घासीराम वर्मा जो लगभग 95 साल के हैं इनमें लड़कियों की एजुकेशन में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
इन्होंने लड़कियों को शिक्षा दिलाने के लिए अपनी सारी संपत्ति दान में दे दी और एक करोड़पति फकीर बन गए।
यह राजस्थान के झुंझुनू के रहने वाले हैं यह एक मैथमेटिशियन है। इन्हीं के प्रयासों से हजारों लड़कियों को एजुकेशन प्राप्त हुई इन्होंने जो संपत्ति दान की थी उससे स्कूल बने और इनका संचालन कार्य अच्छे से हो रहा है। इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए 10 करोड़ रुपए दान दिए।
खबरों की माने तो डॉक्टर घासीराम वर्मा राजस्थान ने 28 हॉस्टल 21 स्कूल और कॉलेज संस्थाओं की स्थापना की। डॉक्टर वर्मा का मानना है कि देश के विकास के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है इसके लिए इस दिशा में हम छात्रों की मदद करें।
पढ़ने के लिए किया था बहुत संघर्ष
डॉक्टर वर्मा इस समय अमेरिका में है वह हर तीन महीने के बाद इंडिया आते हैं और लड़कियों के एजुकेशन में लगभग 50 लाख रुपए की मदद देते हैं, इनके द्वारा दिया गया सारा पैसा स्कूल और कॉलेजों में जरूरतमंद स्टूडेंट्स के लिए होता है और उनकी मदद की जाती है।
खबरों की माने तो डॉक्टर वर्मा की फैमिली के पास इनकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे उन्होंने अपनी स्कॉलरशिप से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। मैथ्स में अधिक रूचि होने के कारण इन्होंने मैथ सब्जेक्ट से ग्रेजुएशन की और बच्चों को पढ़ाते हुए अपनी पीएचडी पूरी की।
1998 इन्होंने न्यूयॉर्क के रोड आइसलैंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया जहां इन्हें महीने के 400 डॉलर मिलते थे।
खुद की पेंसिल से लड़कियों की एजुकेशन में मदद
डॉक्टर वर्मा 20 साल पहले रिटायर हो चुके थे, डॉक्टर वर्मा को अपनी पेंशन और इन्वेस्टमेंट के जरिए लगभग 68 लाख रुपए मिलते हैं जिनमें से 50 लाख रुपए लड़कियों की एजुकेशन में दान देते हैं।
1981 में जब भारत आए तो उन्होंने एजुकेशन इंस्टिट्यूट की कमी मे गर्ल्स को हो रही परेशानी को देखते हुए इन्होंने एक गर्ल्स हॉस्टल बनवाया, जो आगे चलकर एक कॉलेज भी बना। इस कॉलेज में लगभग 1800 लड़कियां पढ़ती हैं साथ लड़कियों को स्कॉलरशिप भी दी जाती है।
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