माँ के दिए 25 रुपए से खड़ा कर दिया 7 हजार करोड़ का बिजनेस, जब 6 महीने के थे तभी पिता का साया...
माँ के दिए 25 रुपए से 7000 करोड़ की कंपनी के मालिक बनने का सफर, इसके लिए घर भी छोड़ दिया
by SNEHA SHARMA
दोस्तों हम सब ओबेरॉय ग्रुप के बारे में बहुत अच्छे तरीके से जानते हैं, कि आज इस ग्रुप ने बिजनेस जगत में क्या मुकाम हासिल कर रखा है और आज हम आपको इस ग्रुप के संस्थापक राय बहादुर मोहन सिंह के बारे में बताने जा रहे हैं, कि इन्होंने किस तरह इस ओबेरॉय ग्रुप को खड़ा किया है और इसके लिए उन्होंने कितनी परेशानियों का सामना किया है। आज अगर हम देखे तो ओबरॉय परिवार एक अमीर परिवारों में आता है, लेकिन इसके लिए ओबेरॉय ग्रुप के चेयरमैन राय बहादुर ने बहुत ही परेशानियों का सामना किया है।
मोहन सिंह ओबेरॉय का जन्म वर्तमान समय के पाकिस्तान के झेलम जिले के भनाऊ गांव में हुआ था और इनका जन्म एक सिख परिवार में हुआ था, इनके पिता का निधन जब यह 6 महीने के थे तभी हो गया था और बचपन से ही इनकी परीक्षा शुरू हो गई थी, इनके पिताजी की मौत की वजह से इनके पालन पोषण की सारी जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भनाउ गांव के एक विद्यालय से ही पूरी की, फिर आगे की शिक्षा के लिए यह पाकिस्तान के एक शहर रावलपिंडी में चले गए। जहां पर इन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई पूरी कर ली। इसके बाद इनके सामने सबसे बड़ी समस्या जॉब की थी उन्होंने इसके लिए कई जगह प्रयास किया पर कहीं नौकरी ना मिली, लेकिन कुछ दिनों बाद इनके चाचा ने इनके लिए एक जूते के कारखाने में बात कर इनको काम दिलवा दिया, लेकिन इसके बाद भी इनके सामने एक बड़ी समस्या यह आई कि कुछ ही दिनों बाद वह कारखाना बंद हो गया, कुछ ही समय बाद इनकी शादी कोलकाता के एक परिवार में हो गई।
ओबेरॉय बताते हैं कि उस समय मैंने अपने ससुराल में एक अखबार में एक नौकरी का विज्ञापन देखा और यह क्लर्क की नौकरी का था और इसकी योग्यता मैं रखता था, इस विज्ञापन को देखकर ओबेरॉय बिना समय खराब किए शिमला पहुंच गए, इस दौरान इनकी मांग ने इनको 25 रुपए दिए जो इनके बहुत ही काम आए थे। वहां जाने के बाद इनको 40 रुपए में होटल में क्लर्क की नौकरी मिली, धीरे-धीरे समय बीतने के बाद इनकी सैलरी 50 रुपए हो गई, इन्होंने अपने इस पद पर खूब मेहनत की और ब्रिटिश हुक्मरानों के दिलो मे इनके लिए अलग ही जगह थी, वहां पर इन्होंने बहुत ही अच्छी इमेज बना ली, लेकिन एक दिन ऐसा आया कि होटल के मैनेजर ने मोहन सिंह ओबेरॉय को एक ऑफर दिया और कहा कि आप इस होटल को 25000 रुपए में खरीद लीजिए, मोहन सिंह ओबरॉय इस पर थोड़ा सोच विचार करके होटल को खरीदने के लिए तैयार हो गए, लेकिन 25000 रुपए बहुत ही बड़ी राशि थी इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर और संपत्ति गिरवी रख दिए। ओबरॉय ने इस रकम को होटल मैनेजर को 5 वर्ष में लौटाया और 14 अगस्त 1934 को इस होटल के मालिक बन गए। होटल के मालिक बनने के बाद उन्होंने ओबरॉय ग्रुप की स्थापना की इन्होंने इस ग्रुप की स्थापना की उस समय इनके 5 बहुत बड़े-बड़े होटल और 30 छोटे होटल थे और आज के समय में ओबेरॉय ग्रुप लगभग विश्व के 6 देशों में अपना साम्राज्य फैलाए हुए हैं और ओबेरॉय आज सात हजार करोड़ के ग्रुप के मालिक हैं।
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