आर्थिक स्थिति इतनी बुरी कि दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी नहीं हो पाता था, गरीबी को हराकर बारवी में लाई 96.6%, बनी जिला टॉप
पापा रोड किनारे बेचते हैं टोपियां, लाडो गरीबी से लड़ी और उसे हरा कर 12वीं में पाए 96.6 प्रतिशत बनी टॉपर, विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का रास्ता ढूंढ ही.
by NIDHI JANGIR
गरीबी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है। इस गरीबी के कारण है लोगों में प्रतिभाएं होने के बावजूद भी वह दिखा नहीं पाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो इन विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का रास्ता ढूंढ ही लेते हैं इन्हीं लोगों में से यह एक लड़की भी है।
आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी बनी टॉपर
उर्सुलाइन कॉन्वेंट गर्ल्स स्कूल, रांची में 12वीं साइंस की छात्रा सिमरन नौरीन ने खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद भी जिले में टॉप किया। सिमरन को 12वीं क्लास में 96.6 % अंक प्राप्त हुए इन्हीं अंकों के साथ सिमरन रांची की टॉपर बनी और पूरे राज्य में पांचवा नंबर पर आई। सिमरन के पिता जसीम अख्तर हाट बाजार में फुटपाथ पर टोपी बेचने का काम करते हैं मां इशरत एक हाउसवाइफ है।
टेंथ क्लास में भी रही टॉपर
सिमरन की बड़ी बहन आरफा फिजिक्स से पीजी कर रही है। रिजल्ट डिक्लेअर होने वाले दिन सिमरन अपनी मां के साथ स्कूल गई और जब उसे अपने परिणाम के बारे में पता चला तो बहुत खुश हुई। टीचर्स ने उससे कहा कि उसने 10th क्लास में टॉप रैंक हासिल की है और उन्हें भरोसा था कि यह 12th में भी अच्छी रंग लाएगी
10th क्लास टॉप करने के बाद सिमरन आगे सीबीएसई स्कूल में एडमिशन लेना चाहती थी लेकिन इसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि किसी प्राइवेट स्कूल में इसका दाखिला करवा दें, फिर क्या सिमरन को अपनी इस इच्छा को दबाना पड़ा और इसमें इसी स्कूल में अपनी पढ़ाई आगे जारी रखें।
पिता हाट बाजार में बेचते हैं तो टोपियां
सिमरन जानती परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है उसने गरीबी को करीब से देखा है माता पिता का जीवन भी गरीबी में ही गुजरा है। सिमरन खूब पढ़ लिखकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना चाहती है।
सिमरन की मां इशरत जहां ने कहा कि सिमरन के पिता हाट बाजार में टोपी व अन्य सामान बेचकर घर का खर्चा चलाते हैं। लोकडाउन में हमारी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई थी क्योंकि हाट बाजार बंद हो गया था ऐसे में दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी बहुत मुश्किल से हो पाता था। हालात इतने बुरे हो चुके थे कि हमने मन बना लिया था कि अब बच्चियों को आगे नहीं पढ़ाएंगे लेकिन फिर जैसे तैसे करके बच्चियों की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए। इशरत जहां ने कहा बुरे दिन चले गए जब हमें यह पता चला कि बेटी ने पूरे झारखंड का ही नहीं बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है।
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